Zakir Khan Shayari and Quotes | जाकिर खान शायरी with images – 2025

New Zakir Khan Shayari

Zakir Khan Shayari “जाकिर खान शायरी” अपने दिल को छूने वाले जज्बात और असली जिंदगी के ताजूरों का एक अनमोल संग्रह है। उनकी Zakir Khan Shayari on Love (जाकिर खान शायरी ऑन लव) हमेशा मोहब्बत की गहराइयों को बयां करती है, जो हर दिल से सीधे जुड़ती है। इसी तरह,

Emotional Zakir Khan Shayari (इमोशनल जाकिर खान शायरी) इंसान के दर्द, खुशी और जिंदगी के सफर को ऐसे लफ्जों में पेश करती है जो दिल को छू जाए। अगर आपको जिंदगी से जुड़ी सोच पसंद है तो जाकिर खान की जिंदगी पर शायरी आपको एक नई राह दिखेगी। शायरी और उद्धरण के शौकीन हमेशा ज़ाकिर खान शायरी इन हिंदी को अपनी भावनाएं व्यक्त करने का बेहतर तरीका बताते हैं।

Zakir Khan Shayari

Zakir Khan Shayari
Zakir Khan Shayari
मेरी जमीन  तुमसे गहरी रही है,
वक़्त आने दो, आसमान भी तुमसे ऊंचा रहेगा।
मैं वक्त और तुम कयामत। देखना,
जब हम मिलेंगे तो इस कायनात में सब कुछ रुक जाएगा।
मेरी जमीन तुमसे गहरी रही है,
वक़्त आने दो, आसमान भी तुमसे ऊंचा रहेगा
यूँ तोह भूले हैं हम लोग कई पहले भी बहुत से,
पर तुम जितना कोई उनमें से कभी याद नहीं आया
मैं वक़्त और तुम क़यामत. देखना,
जब हम मिलेंगे तो इस कायनात में सब कुछ रुक जायेगा
यूं तो भूले हैं हमें लोग कई, पहले भी बहुत से,
पर तुम जितना कोई उन्मे सें, कभी याद नहीं आया।

Zakir Khan Shayari on Love

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Zakir Khan Shayari on Love
कामयाबी तेरे लिए हमने खुद को कुछ यूं तैयार कर लिया,
मैंने हर जज़्बात बाजार में रख कर एश्तेहार कर लिया
हम दोनों में बस इतना सा फर्क है उसके सब “लेकिन”
मेरे नाम से शुरू होते हैं, और मेरे सारे “काश” उस पर आ कर रुकते हैं
तेरी बेवफाई के अंगारो में लिप्ति रही यूं रूह मेरी।
मैं इस तरह आग न होता, जो हो जाति तू मेरी।
मेरे कुछ सवाल है जो सिर्फ क़यामत के रोज पूछूँगा तुमसे,
क्युकी उसके पहले तुम्हारी और मेरी बात हो सके,
इस लायक नहीं हो तुम
तुम भी कमाल करते हो,
उम्मीदें इंसान से लगा कर
शिकवे भगवान से करते हो

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Zakir Khan Shayari in Hindi

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Zakir Khan Shayari in Hindi
इंतकाम सारे पूरे किए, पर इश्क अधूरा रहने दिया।
बता देना सबको की, में मतलबी बड़ा था।
हर बड़े मुकाम पे तन्हा ही मैं खड़ा था।
मोह्हबत करो बहोत,
लेकिन खुद के इज़्ज़त के साथ करो
बहुत मासूम लड़की है इश्क़ की बात नहीं समझती न जाने
किस दिन में खोयी रहती, मेरी रात नहीं समझती
ज़मीन पर आ गिरे जब आसमां से ख़्वाब मेरे,
ज़मीन ने पूछा क्या बनने की कोशिश कर रहे थे।
जिंदगी से कुछ ज्यादा नहीं, बस इतनी सी फरमाइश है।
अब तस्वीर से नहीं तफ़सील से मिलने की ख्वाहिश है।

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Emotional Zakir Khan Shayari

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Emotional Zakir Khan Shayari
मेरे घर से दफ्तर के रास्ते में
तुम्हारी नाम की एक दुकान पढ़ती हैं
विडंबना देखो,
वहां दवाइयां मिला करती है।
अब कोई हक से हाथ पकड़कर महफिल में दोबारा नहीं बैठा।
सितारों के बीच से सूरज बनने के कुछ अपने ही नोकसान हुआ करते हैं।
इश्क को मासूम रहने दो नोटबुक के आखिरी पन्ने पर,
आप इस्तेमाल किताब में डालकर मुश्किल न कीजिए
तेरी शर्तः पे ही करना है अगर तुझ को क़ुबूल,
ये सहूलत तो मुझे सारा जहाँ देता है
मैं वक़्त और तुम क़यामत. देखना,
जब हम मिलेंगे तोह इस कायनात में सब कुछ रुक जायेगा

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Zakir Khan Shayari on Life

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Zakir Khan Shayari on Life
इश्क़ को मासूम रहने दो नोटबुक के आख़री पन्ने पर
आप उसे किताबों म डाल कर मुस्किल ना कीजिए।
वो तितली की तरह आई और जिंदगी को बाग कर गई,
मेरे जितने नापक थे इरादे उन्हें भी पाक कर गई।
अपने आप के भी पीछे खड़ा हूं में,
जिंदगी कितना धीरे चला हूं में।
मित्रता कभी दर्पण से अधिक समय तक नहीं रहती है,
इस तरह की ईमानदारी भी रिश्तों के लिए ठीक नहीं है..!!
एक अर्से से हूँ थामे, कश्ती को भंवर में.
तूफ़ान से भी ज्यादा, साहिल से सिहरता हूँ
मेरी जमीन तुमसे गहरी रही है,
वक़्त आने दो, आसमान भी तुमसे ऊंचा रहेगा.

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Zakir Khan Quotes

Zakir Khan Shayari on Love
Zakir Khan Quotes
मेरी औकात मेरे सपनों से इतनी बार हारी हैं के
अब उसने बीच में बोलना ही बंद कर दिया है।
मेरी ज़मीन तुमसे गहरी रही है।
वक्त आने दो, आसमान भी तुमसे ऊंचा रहेगा।
अब कोई हक़ से हाथ पकड़कर महफ़िल में दोबारा नहीं बैठाता,
सितारों के बीच से सूरज बनने के कुछ अपने ही नुकसान हुआ करते है
अपने आप के भी पीछे खड़ा हूँ में,
ज़िन्दगी कितने धीरे चला हूँ मैं,
और मुझे जगाने जो और भी हसीं होकर आते थे,
उन् ख़्वाबों को सच समझकर सोया रहा हूँ मैं
मोहब्बत करो बहोत,
लेकिन खुद के इज्जत के साथ करो

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Motivation Zakir Khan Shayari

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Motivation Zakir Khan Shayari
ज़मीन पर आ गिरे जब आसमां से ख़्वाब मेरे
ज़मीन ने पूछा क्या बनने की कोशिश कर रहे थे।
काम्याबी तेरे लिए हमने खुद को कुछ यूं तैयार कर लिया,
मैंने घंटे जज़्बात बाज़ार में रख कर इश्तेहार कर लिया!
हर एक दस्तूर से बेवफाई मैंने शिद्दत से हैं निभाई,
रास्ते भी खुद हैं ढूंढे और मंजिल भी खुद बनाई
मैं चाह कर भी, तुम जैसा नहीं बन पाया।
देखो ना…तुम तो आगे बढ़ गए, पर में कहां बढ़ा पाया।
वो रिश्ता मेरे लिए 2 के पहाड़े जैसा,
पर उसे लिए 19 का टेबल हो गया है,
मुझसे भूला नहीं जाता,
उसे याद दिलाना पड़ता है.
क्या अपनी छोटी अंगुली से उसका,
हाथ भी थाम लिया करती हो,
क्या वैसे ही जैसा मेरा थामा करती थी

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